गले से संबंधित रोग दूर होते हैं बुद्धि को तेज करता है पढ़ने में स्टडी करने में मन लगने लगता |
भ्रामरी प्राणायाम में भ्रमर तरह आवाज होती है | इसे बी ब्रीथ भी कहा जाता है | इस प्राणायाम में वैसा ही स्वर निकलता है जैसे मधुमक्खियां की आवाज होती है | इससे चिंता तनाव दूर होता है | मन एकाग्र होता है, मन शांत होता है | गले से संबंधित रोग दूर होते हैं | मानसिक रोग दूर होते हैं | एकाग्रता बढ़ती है, ध्यान में मन लगने लगता है | बुद्धि को तेज करता है पढ़ने में, स्टडी करने में मन लगने लगता है | ब्लड प्रेशर को संतुलित करता है
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ |Bhramari Pranayama Benefits
भ्रामरी प्राणायाम के 21 फायदे
- यह चिंता और तनाव को दूर करता है |
- यह मन को शांत करता है शारीरिक और मानसिक रोग ठीक होते हैं |
- यह आवाज को मधुर बनाता है और स्वतंत्र को मजबूत करता है |
- गले से संबंधित अनेक परेशानियों का इलाज होता है |
- यह ब्लड प्रेशर को संतुलित करता है |
- यह मन में एकाग्रता लाता है और मन नियंत्रित होने लगता है |
- इससे ध्यान लगता है | चित्त शांत होता है |
- यह क्रोध, उत्तेजना, हताशा, चिंता, नकारात्मक विचारों और भावनाओं को दूर करता है |
- यह सिर दर्द और माइग्रेन को दूर करता है |
- यह बुद्धि को तेज करता है और पढ़ने की क्षमता को बढ़ाता है |
- भ्रामरी प्राणायाम से आत्मविश्वास जगाता है |
- यह अनिद्रा को दूर करता है |
- भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से क्रोध चिंता एवं तन्द्रा का निवारण करता है |
- रक्तचाप को घटाकर प्रमस्तिष्क तनाव की समस्या को दूर करता है |
- वासना के मानसिक एवं भावनात्मक प्रभाव को कम करता है |
- भ्रमरी प्राणायाम का अभ्यास शरीर के ऊतकों के स्वस्थ होने की गति को बढ़ाता है |
- भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से व्यक्ति की आवाज में सुधार आता है |
- मधुर आवाज होती है तथा गले के रोगों का निवारण करता है |
- यह प्राणायाम नियमित अभ्यास करने से चेतना को अंदर तक ले जाता है और समाधि का आभास देता है |
- भ्रामरी प्राणायाम डिप्रेशन तनाव एवं चिंता को दूर करने में सहायक है |
- एकाग्रता और याददाश्त बढ़ाने के लिए भ्रमरी प्राणायाम बेहद लाभदायक है |
- क्रोध को शांत करता है और मानसिक रोग दूर होते हैं |
भ्रामरी प्राणायाम की विधि | Bhramari Pranayama ki Vidhi
- भ्रमरी प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम किसी ध्यानात्मक सुविधाजनक आसन में बैठ जाएं |
- आप अपने मेरुदंड एवं सिर गर्दन को सीधा रखें |
- आप अपने दोनों हाथ चिन मुद्रा या ज्ञान मुद्रा में घुटनों के ऊपर रखें |
- अब अपने दोनों हाथों को बगल में कंधों के समानांतर फैलाएं |
- अपने दोनों हाथों की कुहानियों को मोड़कर हाथों को कानों के पास लाते हुए तर्जनी या मध्यमा उंगली से कानों को बंद करें |
- दोनों कानों को अंगूठे से बंद करके रखें ताकि बाहर की आवाज प्रवेश न करे |
- अपनी अब चार उंगली उनको चहरे के ऊपर रखें आंखें एवं मुख को बंद रखें |
- इसके बाद अपनी सजगता को मस्तिष्क के केंद्र पर एकाग्र करें जहां आज्ञा चक्र स्थित है |
- संपूर्ण शरीर को पूर्णतया स्थिर रखें |
- अब अपनी नासिका से पूरक करें यानी गहरी श्वास लें |
- अब रेचक यानी श्वास को नाक से छोड़ते समय भ्रमर के गुंजन के समान आवाज करें |
- गुंजन की ध्वनि पूरे रेचक में स्थिर गहरी सम और अखंड होनी चाहिए |
- रेचक पूर्ण रूप से नियंत्रित हो तथा उसकी गति मंद हो |
- इस प्रकार या एक चक्र पूर्ण हुआ रेचक पूर्ण होने पर फिर से गहरी श्वास लें और अभ्यास की पुनरावृत्ति करें |
- इस प्रकार आप आरंभ में 3 से 5 आवृत्ति करें और धीरे-धीरे अभ्यास की अवधि को 2 से 5 मिनट तक बढ़ा सकते हैं |
भ्रामरी प्राणायाम की सावधानियां | Bhramari Pranayama ki Shavdhaniyan
- इसका अभ्यास हमेशा खाली पेट करें |
- भ्रमरी प्राणायाम का अभ्यास कभी लेटकर नहीं करना चाहिए |
- यदि व्यक्ति को कानों में किसी संक्रमण की समस्या है तो इसका अभ्यास न करें जब तक संक्रमण दूर न हो जाए |
- हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को इसका अभ्यास बिना कुंभक के करना चाहिए |
- भ्रमरी प्राणायाम की समय अवधि प्रातः कार्य मध्यरात्रि है क्योंकि उस समय में बाधा डालने वाली ध्वनियाँ बहुत कम होती है इसलिए हमें इसका अभ्यास हमेशा ऐसी जगह करें जहां का वातावरण शांत हो |
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