agnisar kriya in hindi अग्निसार प्राणायाम
agnisar kriya: अग्नि का अर्थ स्पस्ट है | सार का अर्थ होता है तत्व | अग्निसार का अर्थ है | जिस क्रिया द्वारा जठराग्नि को तीव्र करके पाचन शक्ति को बढाया जाए | अर्थात शरीर की अशुद्धियों को धोकर बाहर निकालने का काम करती है | मनुष्य के शरीर में 75% बीमारियाँ पेट की गड़बड़ी के कारण होती हैं | आन्तरिक अंग कमजोर पड़ जाने से पाचन ठीक से नहीं हो पाता और कब्ज, दस्त एवं किडनी या लीवर की बीमारियाँ हो जाती हैं | अग्निसार से पेट की पाचन शक्ति बढ़ती है | जिससे शरीर के रोग दूर होते हैं तथा मानसिक शांति मिलती है |
अग्निसार क्रिया के लाभ agnisar kriya benefits
- अग्निसार से पेट के सभी अंगों की मालिश होती है |
- पेट की क्रियाशीलता बढ़ती है व पाचक रसों का स्त्राव नियमित होता है |
- पाचन शक्ति बढ़ती है और जठराग्नि प्रदीप्त होती है |
- पेट के कीड़े मर जाते हैं |
- पाचन तंत्र के रोग जैसे कब्ज, पित्त, पेट की गैस, अति अम्लता, अल्प अम्लता, यकृत के रोग सहज ही ठीक हो जाते हैं |
- पेट के सभी अंग संतुलित होते हैं |
- पेट की गैस वायु विकार ठीक होने लगता है |
- यह पेट की मांसपेशियों और नसों को मजबूत बनाता है |
- यह आमशय की अग्नि को सुधारता है और भूंख बढाता है |
- यह कब्ज को दूर करता है |
- लीवर को शक्ति प्रदान करता है |
- अग्निसार प्राणयाम पेट की गैस, अपानवायु को दूर करता है |
- पाचन प्रणाली सुचारू रूप से कार्य करती है |
- इससे उदर विकार दूर होते हैं तथा अन्न को पचाने वाली जठराग्नि प्रदीप्त होती है |
अग्निसार के मानसिक लाभ
- तनाव दूर होता है |
- एकाग्रता बढ़ती है |
- निराशा दूर होती है |
- मानसिक संयम बढ़ता है |
- यह उत्साह को बढाता है |
- उदासी को दूर करता है |
अग्निसार प्राणायाम किस आसन में करें
अग्निसार प्राणायाम या क्रिया का अभ्यास पद्मासन, सिद्धासन में कर सकते हैं | मैं इस लेख में खड़े होकर अग्निसार कैसे किया जाता है बताया हूँ | इसे खड़े होकर थोडा झुककर भी किया जाता है | इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात है | अग्निसार और नौली क्रिया में थोडा अंतर है | अग्निसार में पेट को अप डाउन (आगे पीछे) किया जाया है | नौली क्रिया में पेट की मांसपेशियों को घुमाया जाता है पहले दाहिने ओर फिर बाई ओर गति के साथ किया जाता है |
अग्निसार क्रिया की विधि
घेरान्य संहिता 1/19 के अनुसार
अग्निसार खड़े होकर और बैठ कर दौनों प्रकार से किया जाता है |
अग्निसार क्रिया खड़े होकर
- सीधे खड़े हो जाइये |
- दोनों पैरों में करीब 1 से 2 फिट का अंतर रखें, दोनों हाथ अपने घुटनों पर रखें |
- श्वास को धीर-धीरे बाहर छोड़ें | स्वांस बहार ही रोके |
- श्वास बाहर पेट अन्दर की ओर सिकुड़ जायेगा |
- बिना श्वास लिए पेट को आगे-पीछे (अप डाउन) करें |
- इस प्रकार पेट को 4 से 6 बार आगे पीछे करें |
- अब धीर.धीरे श्वास लें | थोडा रिलेस होकर फिर से करें |
- अग्निसार क्रिया को अपने समर्थ के अनुसार करें |
- नाभि ग्रंथि रीढ़ की हड्डी (मेरु दंड) में लगाने का प्रयत्न करें
अग्निसार क्रिया बैठ कर
- सुखासन में बैठ जाएँ |
- दोनों हाथो को घुटनों पर रखें आँखें बंद कर लें |
- मुख से या नाक से स्वास को बहार निकाले और स्वास को बहार ही रोक दें |
- कंधे ऊपर उठायें, हाथ सीधे ताने और पेट की मांसपेशियों को अंदर बहार हिलाएं दुलायें |
- थोड़ी देर रिलेक्स कर पुनः करें शुरुवात में 5 से 7 बार करें आगे अपने समर्थ के अनुसार करें |
(स्वास को बहार रोक कर, पेट की मांसपेशियों को आगे पीछे करें)
अग्निसार करने का समय
- भोजन के बाद अग्निसार नहीं करना चाहिए |
- खाना खाने के कम से कम 3 से 4 घंटे बाद करना चाहिए |
- इस अभ्यास का उत्तम समय सुबह (प्रातःकाल) है |
- सामान्य व्यक्ति को 2 से 3 बार करना चाहिए | अग्निसार का अभ्यास होने पर अपने क्षमता के आनुसार कर सकते हैं |
- हर एक बार अग्निसार करने के बाद कुछ देर आराम कर लें |
अग्निसार विधि की सावधानियां
- इस अभ्यास को खाली पेट करना चाहिए |
- हमारे ह्रदय संस्थान, रक्त परिसंचरण तंत्र, श्वसन तंत्र पर बहुत जोर पड़ता है इसलिए इसका अभ्यास धीरे-धीरे करना चाहिए |
- जिसे ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप पेट या आमाशय में नासूर (पेट या अमाशय में अल्सर), हर्निया, दमा रोग होने पर इसे न करें |
- गर्भावस्था में इसे न करें |
- महिलाएं मासिक धर्मं के समय इसे न करें |
- प्रसव के बाद बहुत उपयोगी होता है |
- इस आसन को खाली पेट करना चाहिए |
- श्वास लेते समय जोर न लगायें |
- भोजन के बाद इसका अभ्यास न करें |