भस्त्रिका प्राणायाम क्या है | Bhastrika Pranayam Kya hai
भस्त्रिका प्राणायाम यहां भस्त्रिका से तात्पर्य है |
धौकनी यह वह उपकरण है जिसका उपयोग लोहार कोयले की आग को तेज करने के लिए करता है |
इससे तात्पर्य है कि इस प्राणायाम में श्वास की गति लोहार की धौंकनी के समान होती है |
स्वास्थ्य की प्रक्रिया को तेज गति से जल्दी-जल्दी स्वास लेना छोड़ना ही भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है |
विद्वानों ने इसे भस्त्रिका कुंभक भी कहा है | यह अष्ट कुंभक में से एक है |
भस्त्रिका प्राणायाम की विधि | Bhastrika Pranayam ki Vidhi
इस प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम ध्यानात्मक आसन अर्थात पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं |
कमर गर्दन रीड एक सीध में रखते हुए शरीर को स्थिर रखें |
हमारे दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखेंगे आंखें बंद करें |
अब लोहार की धौकनी के समान अंतर से अपने दोनों नासिका से बार-बार पूरक एवं रेचक की क्रिया करें |
हाथ श्वास लेकर ऊपर करें श्वास छोड़ते हुए हाथ नीचे करें |
पूरक अर्थात सांस लेना रेचक का अर्थ है स्वास छोड़ना |
नासिका से लययुकत स्वांस लेने और छोड़ने की क्रिया जल्दी जल्दी करें |
अपनी सजगता को पेट की गति तथा मानसिक गणना पर केंद्रित रखें अर्थात स्वास्थ को पेट की गति और मानसिक गणना पर स्थिर रखें |
इस प्रकार 20 20 बार इसका अभ्यास करें और अल्प समय के लिए बीच-बीच में विश्राम कर ले |
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ | Bhastrika Pranayam ke Labh
भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करने से वात पित्त एवं कफ दोषों का निवारण होता है |
भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से संपूर्ण शरीर में प्राण संचार का विकास करता है |
यह हमारे शरीर के लिए उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है तथा लोगों को सोच में इस तरह से बाहर निकालने में मदद करता है |
यह प्राणिक शरीर को सामर्थ्यसाली बनाता है |
भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास शरीर और मन को अधिक स्फूर्ति प्रदान करता है |
यह फेफड़ों के वायु कोषों को खोलता है |
इसके अभ्यास से व्यक्तित्व अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है और उच्च दिव्य एवं सूक्ष्म तरंगों के प्रति अधिक ग्रहण शील होने लगता है |
भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से दिन प्रतिदिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है और किसी प्रकार के रोग होने की संभावना बहुत कम होती है |
भस्त्रिका प्राणायाम की सावधानियां | Bhastrika Pranayam ki Savdhaniyan
यदि व्यक्ति को चक्कर आ रहे हो या अधिक पसीना आए या सर चकराने लगे तो इसका अर्थ है कि अभ्यास सही ढंग से नहीं किया जा रहा है | बलपूर्वक श्वसन न करें श्वास की गति नियंत्रित होनी चाहिए और यदि ऐसा हो रहा है तो हमें अपनी सांस की गति को नियंत्रित करके फिर इसका अभ्यास करना चाहिए |
अभ्यास करते समय चेहरे में विकृति न आने दें और शरीर को बहुत अधिक न हिलाए |
जो नए व्यक्ति हैं जो अभी अभी से अभ्यास कर रहे हैं उन्हें प्रत्येक आवृत्ति प्राणायाम के बाद कुछ देर तक विश्राम करना चाहिए |
गर्मी के दिनों में प्राणायाम का अभ्यास कम करना चाहिए या न करें क्योंकि इस प्राणायाम से शरीर के तापमान में वृद्धि होती है | जिससे हमें और गर्म ताप मिलता है |
उच्च रक्तचाप, हर्निया, गैस्ट्रिक अल्सर, मिर्गी हृदय रोग या भ्रम से पीड़ित व्यक्ति को भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए
हृदय रोग, दमा, दीर्घकालिक ब्रोंकाइटिस आदि से पीड़ित व्यक्तियों तथा उन व्यक्तियों को जो यक्ष्मा से स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं | यह अभ्यास कुशल मार्गदर्शन में ही करना चाहिए |
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