What is Naturopathy | प्राकृतिक चिकित्सा क्यों और कैसे

What is Naturopathy प्राकृतिक चिकित्सा क्यों और कैसे 

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अपूर्व है, अद्भुत है, अद्वितीय है |

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं | ख़राब दिनचर्या, गलत खानपान, योगासन-व्यायाम की कमी, तनाव आदि के कारण बीमारियाँ होने लगती हैं |

नेचुरोपैथी में शरीर अपने आप ही हील करता है | इसे हील करने के लिए पंचकर्म, षट्कर्म इनके द्वारा किया जाता है | प्राकृतिक चिकित्सा में और भी अलग-अलग तरह से प्राकृतिक तरीको से इलाज किया जाता है | जैसे मिट्टी चिकित्सा, जल चिकित्सा, सूर्य चिकित्सा, संतुलित आहार से, मालिस से, योग से, आयुर्वेदिक दबाएँ से शरीर में जमे विषाक्त पदार्थ की शुद्धी कर शरीर को रोगमुक्त किया जाता है |

इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज किया जाता है | पाचन तंत्र के रोग, स्वास के रोग, त्वचा, गठिया, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदयरोग, मानसिक रोग इत्यादी |

प्राकृतिक चिकित्सा के महान वैज्ञानिक लूई कुने के अनुसार प्रारंभ में रोग के विजातीय पदार्थ मल मार्ग के पास एकत्रित होता है | कब्ज या अन्य कारणों से उसे निकलने का मौका नहीं मिलता है | वैसी स्थिति में शरीर के ऊपरी भाग में फैलने लगता है | गर्दन के आसपास अकडन-जकडन होने लगाती है | यही विषैले पदार्थ सर्दी, जुखाम, दस्त इत्यादि रोगों के रूप में बाहर निकलते हैं | शरीर में हानि पहुचाने के पूर्व ही प्राकृतिक साधनों के द्वारा बाहर निकाल देने पर शरीर विष मुक्त हो जाता है |

What is Naturopathy

प्राकृतिक चिकित्सा के 10 मूलभूत सिद्धांत | 10 Basic Principles of Naturopathy 

  1. सभी रोग एक उनके कारण एक उनकी चिकित्सा भी एक |
  2. रोग के कारण कीटाणु नहीं |
  3. तीव्र रोग शत्रु नहीं मित्र होते हैं |
  4. प्राकृतिक स्वयं चिकित्सा
  5. प्रकृति स्वयं चिकित्सक है |
  6. चिकित्सा रोग की नहीं रोगी के पूरे शरीर की होती है |
  7. रोग निदान की विशेष आवश्यक नहीं |
  8. जीर्ण रोग के रोगियों के आरोग्य लाभ में समय लग सकता है |
  9. प्राकृतिक चिकित्सा से दबे रोग उभरते हैं |
  10. मन शरीर तथा आत्मा.तीनों की चिकित्सा साथ.साथ |
  11. प्राकृतोचार में उत्तेजक औषधियों के दिए जाने का प्रश्न ही नहीं |

 प्राकृतिक चिकित्सा की मुख्य विशेषताएँ Salient features of Naturopathy

1. वनस्पति या प्राणी सब ही जीव जगत में स्वतः रोगमुक्त होने की प्रबल शक्ति है | वह शक्ति ही शरीर को धरना किये हुए है | उसी शक्ति द्वारा हम श्वास लेते हैं, ह्रदय धड़कता है | फेफड़े यकृत (लीवर) तथा गुर्दे (किडनी) कार्यरत रहते हैं | सारे शरीर में रक्त उर्जा एवं आक्सीजन का संचार होता है | भोजन पाचन अवचूषण सात्म्य रस रक्त मांस मज्जा वीर्य इत्यादि का निर्माण कोशिकाओं की टूट फूट का निर्माण तथा सृजन इत्यादि समस्त क्रियाओं का संपादन उसी शक्ति द्वारा होता है | इसी शक्ति को जीवनीशक्ति कहते हैं | शरीर कमजोर होने पर विजातीय विषाक्त पदार्थ जमा हो जाते हैं | व्यक्ति रोगी हो जाता है |

2. आहार-विहार, चिंतन, श्वसन खाने पीने में उलंघन नहीं होना चाहिए |

3. मानसिक तनाव, चिंतन, अति विश्राम, रात्रि जागरण, अति उत्तेजना, विषाक्त औषधियां, नकारात्मक विशात्मक विचार, अपर्याप्त नींद एवं विश्राम क्षुब्द विक्षिप्त चित्त आधुनिक यांत्रिक सभ्यता, अति काम वासना, आत्मा निंदा, शल्यकर्म इत्यादि जीवनी शक्ति को कमजोर करती है | जीवनी शक्ति कमजोर होने से साइकोसिस स्कोर्फुला, सोरा, सिफलिस, मर्क्युरियालिज्म, सिंकोनिज्म जीर्ण रोग होते हैं |

4. गलत बेमेल एवं विरुद्ध आहार में जैव खनिज लवणों जीवन सत्वों (Organic Minerals & Vitamins) की कमी तले भुने, निःसत्व संश्लिष्ट एवं संशोधित कहने से बचना चाहिए |

5. परिशोधित आहार के प्रयोग से रक्त तथा लिम्फ (Lymph) या लसीका के घटकों में असामान्य विषम जटिल परिवर्तन हो जाता है | रक्त तथा लिम्फ प्रभाव प्रदूषित हो जाते हैं | रक्त तथा लिम्फ प्रदूषित होने से ज्वर, सूजन, त्वचा पर ददोरे, अर्तिकेरिया, शीत पित्त,  जुखाम, आन्तरिक अवयव में जख्म, फोड़े, फुंसी, जीवाणु, कीटाणु, परजीवी, कीड़े, फफूंद तथा विषाणु की स्थिति पनपती है |

6. सभी रोगों की चिकित्सा एक है | व्यसनों से मुक्त होकर आहार विहार एवं चिंतन को सम्यक बनाकर प्रकति के पंच तत्वों मिट्टी, पानी, धूप, हवा तथा आकाश, उपवास द्वारा चिकित्सा के सम्यक प्रयोग द्वारा शरीर को विषमुक्त कर जीवनीशक्ति को बढाकर स्वास्थ उपलधि की प्रक्रिया ही प्राकृतिक चिकित्सा है |

7. रोग या स्वास्थ्य का मूल कारण मन है, मन ही रोगी, मन ही चिकित्सक है | सबसे पहले मन से रोग उत्पन्न होते हैं | जैसे तनाव, क्रोध, चिंता, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, लोभ, भय, कमातिरेक, कामुकता इत्यादि रोग के बीज हैं | इस प्रकार की मन की स्थिति में रक्त में एड्रीनलिन, कार्टिसोल, एल्डोस्टेरन, एंजियोटेंसिन, पुरुष यौन, हार्मोन, टेस्टोस्टेरन रीढ़ की हड्डी में द्रव रूप में स्थित 5 एच. आई. ए. ए. लैक्टिक एसिड नार एड्रिंलिन इत्यादि रसायनों के बढ़ने से शरीर की समस्त क्रियाएँ अस्त व्यस्त हो जाती हैं | शरीर विष्कांत होने लगता है | प्रेम, प्रसन्नता, मुदिता आह्लाद, करुना, मैत्री, सहानुभूति, उदारता, सहकारिता आदि उदात्त गुण स्वास्थ्य के बीज हैं | इन मनः स्थितियों से रक्त में एंडोर्फिन, दोपेमीन, सेरोटिन आदि फील गुड हैप्पी, हार्मोन रसायनों की वृद्दि होती है  | जिससे रोग से लड़ने की जीवनीशक्ति बढ़ती है | ये रसायन रोग एवं पीड़ा की सहन शक्ति को भी बढ़ाते हैं | तथा समस्त शारीरिक क्रियाएँ एक ले ताल व हार्मोनी में कार्य करने लगाती हैं |

8. शरीर स्वयं एक महान चिकित्सा है | किसी भी रोग या रोगाणु को समाप्त करने के लिए अंग प्रत्यंग जैसे यकृत (लीवर) गुर्दे (किडनी) मुख, आंत, आंख, कान, नाक, त्वचा तथा मस्तिष्क अवयव आवश्यकतानुसार ज्वर, दर्द, सूजन आदि अवरोध अनेक प्रकार की औषधियों का निर्माण करते हैं सिर्फ यकृत (लीवर) 500 प्रकार की औषधियों का निर्माण करता है | यहाँ तक की 60 ख़राब कोशिकाओं से निर्मित इस शरीर की प्रत्येक कोशिका इन्टरफेरान जैसी अनेक रोगानुरोधी एवं पतिरोध शक्ति बढ़ाने वाली औषधियों का निर्माण करती है | आप दर्द से करह उठते हैं | सर्दी जुखाम  उल्टी दस्त या ज्वर ग्रस्त हो जाते हैं | यह सभी कुछ शुभ स्वस्थ होने की नैसर्गिक चिकित्सकीय प्रक्रिया है | प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा इस प्रक्रिया को सहयोग कर स्वस्थ किया जाता है |

 

रोग का अर्थ  Meaning-of-disease

rog-ka-arth-Meaning-of-disease

 

  • रोग को Disease या Disorder कहते हैं | ease का अर्थ चैन अमन शांति तथा order का अर्थ संगीत ले हार्मोनी रिदम होता है | परन्तु मन तथा आहार के असंयम एवं असंतुलन के कारण dis उपसर्ग उपद्रव जुड़ने से अत्याचार हो जाता है | ठीक वैसे ही जैसे आचार के साथ अति उपसर्ग जुड़ने से अत्याचार हो जाता है |  संयमित संतुलित जीवनयापन से उपसर्ग कभी नहीं जुड़ते और आपका जीवन स्वास्थ्य के लय ताल के सुर संगीत से झूमता रहता है |
  • अधिकतर सभी अभावजन्य होते हैं (All Diseases are Deficiency State) रोगों का एक कारण पोषक तत्वों की कमी तथा क्षति भी है | प्राकृतिक आहार एवं चिकित्सा द्वारा इस कमी को पूरी करने पर रोग स्वतः समाप्त हो जाते हैं |
  • प्रायः सभी अभावजन्य रोग सम्पूर्ण अम्रतान्न रसाहर, फलाहार आचार विचार एवं व्यहार के सम्यक प्रयोग द्वारा दूर किये जा सकते हैं |
  • शरीर में विजातीय पदार्थ इकट्ठा होना सभी रोगों का कारण है । (Accumulation of waste toxic and morbid matter and Poisons in the system is the root cause of all diseases) शरीर में विजातीय पदार्थ निम्नलिखित रूप से पैदा होते हैं |
  • कोशिकाओं के निर्माण विघटन तथा चयापचय (Anabolism katabolism and metabolism) की क्रिया से उत्पन्न होने वाल्व विजातीय पदार्थ |
  • गलत आहार संयोजन सत्राप्त कार्बोज हाईड्रोकार्बन प्रोटीन वसा तथा अकबर्निक खनिज लवन उतकों में विजातीय पदार्थ की वृद्धि करते हैं |
  • रक्त तथा उतकों में एकत्रित विजातीय पदार्थ शारीरिक संस्थानों का विध्वंस कर तीव्र तथा जीर्ण रोग पैदा करते हैं |

 

बाहर से शरीर में प्रवेश करने वाले रोगोत्पादक विजातीय जहरीले विषाक्त पदार्थ निम्न हैं 

दुर्व्यसन The pathogenic toxic toxins entering the body from outside are

  • शराब, काफी, चाय, तम्बाकू, नारकोटिक्स ड्रग्स, साफ्ट पेय, कोला एवं कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ अफीम इत्यादि |
  • दर्द नाशक उत्तेजक शामक कीटाणुनाशक गर्भनिरोधक इत्यादि विभिन्न औषधियाँ तथा टीके |
  • आहार अति आहार प्रदोषित आहार परिशोधित आहार गलत आहार संयोजन तीव्र मिर्च मसाले वाले आहार निःसत्व सारहीन तले-भुने, आहार डिब्बा बंद आहार प्रोसेस किया हुआ आहार सुरक्षित (Preserved) आहार |
  • प्राकृतिक चिकित्सा जड़ मूल से रोग को दूर करने का एक विज्ञान है | रोग दूर होने पर चिकित्सा का प्रयोग बंद कर दें | सम्यक आहार विहार एवं चिंतन तथा प्रकृति का उन्मुक्त सेवन करते हुए नैसर्गिक स्वस्थ जीवन जीना ही इस पद्धति का मूल आधार है |
  • प्राकृतिक चिकित्सा को नहीं बल्कि प्राकृतिक जीवन को जीवन के साथ जोड़ें | रोग होने पर चिकित्सा की उपयोगिता है | रोगमुक्त होने पर प्राकृतिक जीवन हमें आनन्द एवं आरोग्य प्रदान करता है | प्राकृतिक एक श्रेष्ठ माध्यम है | स्वास्थ्य उपलब्धि का दुर्घटनाग्रस्त पैर ठीक होने पर वैसाखी स्वतः छुट जाती है | उसी प्रकार स्वस्थ होने पर चिकित्सा के प्रति धन्यवाद का भाव रखते हुए चिकित्सा को छोड़कर प्राकृतिक योगमय सम्यक स्वस्थ जीवन यापन का संकल्प लें |

प्राकृतिक चिकित्सा की सावधानियां 

  • प्राकृतिक चिकित्सा में समय लगता है |
  • बिना प्रशिक्षण के अपने मन से न करें |
  • प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में जाकर प्रशिक्षण लेकर ही करें |
  • यदि किसी प्रकार की दवाइयां चल रही हो तो चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें |
  • यह प्राकृतिक तरीके से इलाज किया जाता है सुरक्षित है पर सावधानियों का ध्यान रखें |

 

 आगे पढ़ें 

आयुर्वेद क्या है

Leave a Comment

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now