Uddiyana Bandha (उड्डीयान बंध) कैसे करें | पेट की बीमारियाँ ख़त्म

uddiyana bandha : उड्डीयान बन्ध का अर्थ क्या है | उड्डियान बंध यह संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है | ऊपर की ओर उठना और बंध का अर्थ है पकड़ना या कसना | इसमे स्वास को छोड़कर पेट को ऊपर डायफ्राम की तरफ उठाया जाता है | इससे पेट रोग दूर होते हैं | पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं | शरीर में ऊर्जा का संचार होता है | नाभि के ऊपर के उदर को पीठ की ओर समभाव में सिकोड़ेंए जिसके परिणाम स्वरुप महाखग प्राण ऊपर उठता है | इसे उड्डीयान बन्ध कहते हैं |

uddiyana bandha - healthyog

उड्डीयान बन्ध के लाभ

  1. पेट और कमर के चर्बी को कम करता है |
  2. शरीर के अंगों में ब्लड सर्कुलेशन होता है |
  3. नियमित अभ्यास से बूढ़े व्यक्ति को भी जवान बना देता है |
  4. सोलह आधारों में से एक आधार नाभि का होता है |
  5. इसका सम्बन्ध पाचन संस्थान से रहता है |
  6. शरीर में जमा हुआ रुका रक्त फिर से प्रवाहित होता है |
  7. इससे सभी अंग क्रियाशील होते हैं |
  8. यह पाचन क्रिया को ठीक करता है |
  9. पाचन क्रिया कार्य करने पर शरीर के भीतर रोग उत्पन्न नहीं होते |
  10. पाचन संस्थान के सभी रोग समाप्त होते हैं |
  11. श्वसन संस्थान के सभी अंगों की मालिस होती है |
  12. फेफड़ों की कार्य क्षमता बढ़ती है |
  13. ह्रदय का कार्य तंत्र मजबूत होता है |
  14. आलस्य दूर होता है चिंता एवं तनाव से राहत मिलती है |
  15. प्राणों का प्रवाह सही दिशा में होता है |
  16. मणिपुर चक्र जाग्रत होता है |

Uddiyana Bandha (उड्डीयान बंध) कैसे करें

 उड्डीयान बन्ध की विधि

उड्डीयान बंध को दो तरह से किया जा सकता है | खड़े हो और बैठ कर

खड़े होकर उड्डीयान बंध करने की विधि

  1. खड़े हो जाएँ, दौनों पैरों में थोडा सा अंतर रखें |
  2. घुटनों को मोड़कर थोडा सा आगे झुकें |
  3. दोनों हाथों को जांघों पर रखें |
  4. मुंह या नाक से हवा को बलपूर्वक निकाल दें और बहार ही रोक कर रखें |
  5. पेट को अन्दर की तरफ खीचें |
  6. अपने समर्थ के अनुसार थोड़ी देर रोके और छोड़ दें |
  7. दो से तीन बार करें |

बैठकर उड्डीयान बंध करने की विधि

  1. सबसे पहले मेट बिछा लीजिये |
  2. पद्मासन या सरल सुख आसन में बैठ जाएँ |
  3. दोनों हाथो को घुटनों पर रख लें
  4. हाथों से घुटनों को दबा ले या ज्ञान मुद्रा बना लें |
  5. स्वास बहार छोड़कर पेट उंदर की ओर करें |
  6. अपने समर्थ के नुसार रोककर रखें |
  7. स्वास अन्दर ले बंध को छोड़ दें |
  8. इस प्रकार 2 से 3 बार करें |

उड्डीयान बंध की अवधि

आरंभ में 2 से 3 बार करें इसे बढ़ाते हुए अभ्यास होने पर 10 बार भी कर सकते हैं |

उड्डीयान बन्ध की सावधानियाँ

  1. उड्डीयान बन्ध का अभ्यास सदैव खाली पेट करना चाहिए |
  2. आंतों या अमाशय में दर्द हर्निया उच्च रक्तचाप ह्रदय रोग ग्लूकोमा होने पर इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए |
  3. गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए |
  4. प्रसव के बाद मांसपेशियों को सशक्त बनाने और पेट को पूर्वाकार में लाने हेतु इसका अभ्यास अवश्य करें |
  5. उड्डीयान बन्ध का अभ्यास केवल पेट को अन्दर खीचना नहीं है द्य इसमे पेट को अन्दर खींचने के साथ ऊपर खींचा जाता है |
  6. यदि पेट को अन्दर खिचेंगे तो नाभि अधिक अन्दर नहीं जाएगी जीतनी क्षमता होती उतनी ही जाएगी लेकिन अन्दर करने के बाद जब नाभि को ऊपर खिचेंगे तब उसे अन्दर जाने के लिए थोडा और स्थान मिल जायेगा यह उड्डीयान बन्ध की सही अवस्था है |
  7. उड्डीयान बन्ध का अभ्यास सदैव खाली पेट करना चाहिए | यदि आंतों या अमाशय में दर्द, हर्निया, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, ग्लूकोमा होने पर इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए |

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उड्डीयान बन्ध का विडियो देखें 

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