कुंडलिनी क्या है | कुण्डलिनी शक्ति जागरण के लक्षण | Kundalini Shakti Kaise Jagrit Kare-Lakshan-Kundalini-Yoga Healthyog
कुंडलिनी शब्द संस्कृत के कुंडल शब्द से बना है | जिसका अर्थ होता है घुमावदार | कुंडलिनी महाशक्ति दिव्य ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रदान करती है और साथ ही यह योगियों के लिए आदि शक्ति है | कुंडलिनी योग आध्यात्मिक विकास की यात्रा का विज्ञान है | कुंडलिनी योग के माध्यम से तेजी से शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास एक साथ होता है |
कुंडलिनी शक्ति प्रत्येक व्यक्ति के मूलाधार चक्र में सर्प के समान कुंडली मारकर सोई रहती है | जिसे हठयोग कुंडलिनी जागरण की कला को अच्छी तरह समझने के लिए सबसे पहले हमें हठयोग के विषय में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करनी होगी |
Kundalini-Yoga | कुण्डलिनी महा शक्ति को ही योगमाया कहते हैं | यही कुण्डलनी महा शक्ति चेतन तत्व की अध्यक्षता में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण करतीं हैं । यही महाशक्ति अज्ञान, अविद्यारूपी सभी जीवों के बन्धन का कारण है | बंधन में बांधती हैं और यही ज्ञानरूपी, विद्या, प्रकाशरूप सभी बंधनों से मुक्त कर देतीं है ।
कुंडलिनी शक्ति Kundlini Shakti in Hindi – यथा पिंडी तथा ब्रह्मांड अर्थात यह मानव शरीर ही ब्रह्मांड है | इसमें अनेक शक्तियों का भंडार है, परंतु साधारण मनुष्य इसे नहीं देख सकता है | योगी उन शक्तियों को महसूस कर सकता है | क्योंकि सोई हुई शक्तियों जागृत करना पड़ता है | कुंडली शक्ति भी इसमें से एक है | उन शक्तियों को जगा कर इंसान मानव ही नहीं महामानव बन जाता है | संसार की समस्त शक्तियों को जानने लगता है | मानव को देव के समान दिव्या दृष्टि मिल जाती है | भगवान आदिनाथ शिव शंकर जी से लेकर महान आत्माओं ने कुंडलिनी शक्ति को जागृत करके चमत्कार दिखाए | इस महामुद्रा से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है |
महामुद्रा की विधि

इसके लिए आसन में बैठ कर दाहिना पैर सीधा करें बयां पैर मोड़कर एडी को गुदा मार्ग के पास सटा लें | स्वांस लेकर दोनों हाथ ऊपर उठायें निचे लाकर दाहिने पैर की उंगलियाँ को पकड़ें | जालंधर बंध लगाकर कुंभक का अभ्यास करें | साधक धीरे-धीरे साथ छोड़े इस महामुद्रा से कुंडली शक्ति जागृत हो जाती है |
कुंडलिनी शक्ति शरीर में व्याप्त होती है | इसे जागने की एक विधि है जो की गुरु शिष्य परंपरा से सीखा जाता है | इसे जगाने के लिए विभिन्न मुद्राएं हैं | आसन, प्राणायाम आदि क्रियांओं के द्वारा जगाया जाता है | इसके लिए जरूरी है कि साधक तीव्र जिज्ञासु हो, आसान, बंध मुद्रा, प्राणायाम में तीव्र गति हो निमित्त रूप से इसका अभ्यास करें | तब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है और गुरु की कृपा हो जाती है | हठ प्रदीपिका में कहा गया है कि जिस प्रकार डंडे की मार खाकर सांप सीधा डंडे की आकृति वाला हो जाता है | उसी कुंडलिनी शक्ति चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार चक्र तक पहुंच कर उसे जागृत कर समाधि को प्राप्त हो जाता है |
इसके लिए साधक विकारों का त्याग करना पड़ता है | कुंडलिनी जागृत होने के बाद साधक को निरंतर इसका अभ्यास करना पड़ता है | यदि साधक साधन काल में अपने विकारों को योग के द्वारा समाप्त नहीं करता है तो तब वहां शक्ति निम्न चक्रों में पतन की आशंका बनी रहती है |
कुंडलिनी शक्ति जागृति के लिए प्राणायाम
इसके लिए प्राणायाम इस प्रकार है – मूलाधार चक्र – रीड की हड्डी के शुरुआती भाग यानी गुदा द्वार के पास होता हैं | सबसे पहले यहां ध्यान को लगाया जाता है | यह कुंडलिनी शक्ति के बैठने का स्थान है | ॐ की मध्यम ध्वनि के साथ प्राणायाम किया जाता है | सीधे हाथ के अंगूठे से दाईं नासिका को बंद करके तीन बार ॐ बोलकर (मन में बोलें) सांस को खींचते हैं और बाई नासिक से छोड़ देते हैं | फिर यही क्रिया सीधे हाथ के अंगूठे से दाई नासिका बंद करके ॐ बोलकर स्वास रोककर दोहराई जाती है | बाई नासिका से धीरे धीरे स्वास छोड़ देते हैं |
यह कल्पना करते हुए की प्राण वायु कुंडलिनी को जगा रही है | इसके बाद यह क्रिया 6 ॐ स्वास खींचकर और इतनी ही देर में स्वास छोड़कर की जाती है | इससे कुंडलिनी जल्दी जागृत होती है | इसे सुबह तीन बार और शाम को तीन बार करना है | फिर धीरे-धीरे अपनी क्षमता के अनुसार इसके समय को बढ़ाना है | जितना मन एकाग्र होता है | कुंडलिनी शक्ति जल्दी जागृत होगी | प्राण शक्ति के मूलाधार चक्र से सहस्त्रार चक्र तक शक्ति का चलन होता है |

कुण्डलिनी शक्ति जागरण के लक्षण
- मूलाधार चक्र में गर्माहट महसूस होना खिचाव हो
- (रीढ़) स्पाइन कॉड में चीटियों जैसा महसूस होना
- मूलबंध, अस्वनी मुद्रा का लगना
- ध्यान में झटके लगना
- स्वास का धीरे हो जाना
- चक्रों पर ध्यान लगने पर प्रकाश दिखाई देना
- स्वादिष्ठ आन चक्र में ध्यान का लगना
- गले में चीटियों का चलना, कंठ चक्र में
- आज्ञाचक्र में प्रकाश सा महसूस होना
- चन्द्र विन्दु, चन्द्रकला से अमृत आना
- आज्ञा चक्र में पूर्ण प्रकाश दिखना
- रात में अचानक नींद का खुलना
- ध्यान में बार बार पेसाब आना
- ज्यादा पसीना आना
- रोने जैसा मन होना
- रीढ़ में उर्जा महसूस होना
- आनंद महसूस होना
साधक को लक्षण दिखाई देना पर आपकी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत हो गई है |
कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने के लाभ
1.साधक आत्म ज्ञानी हो जाता है
2.साधक के लिए सब कुछ सम्भव हो जाता है
3.साधक अनन्त शक्तियों का स्वामी बन जाता है
4.भूत भविष्य वर्तमान, कारण सहित का ज्ञान होना
5.सब पदार्थों का ज्ञान हो जाता है
6.अष्ट एवं सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाना
7.ईश्वर (परम चेतन ) की प्राप्ति होती है।
8.सभी घोषित शक्ति प्राप्त होना |
जैसा चाहता है वैसी ही महान शक्तिशाली संत , ऋषि और ब्रह्म बना देती है
हठयोग के विषय में संक्षिप्त जानकारी
हठयोग में दो शब्द है हठ ह और ठ, ह का अर्थ सूर्य, ठ का अर्थ चन्द्र, इन दोनों के योग को हठ योग कहा जाता है | हठयोग ग्रंथों में शरीर में 7 चक्र, 72 हजार नाड़ियाँ और 10 प्रकार की प्राण या वायु होती हैं | कुंडलिनी शब्द के पर्यायवाची -कुटिलाड्गी, कुंडलिनी, भुजंगीशक्ति, ईश्वरी कुंडली, अरुंधति यह सभी शब्द एक अर्थ के वाचक हैं |
कुंडलिनी हठयोग प्रदीपिका के अनुसार
जिस प्रकार चाभी से हटाथ किवाड़ को खोलते हैं | उसी प्रकार योगी कुण्डलिनी के द्वारा मोक्ष द्वार का भेदन करते हैं | जिस मार्ग से क्लेश रहित ब्रह्मापद को जाया जाता है | उस मार्ग को मुख से ढक कर कुंडलिनी सोई रहती है | मूलाधार से चार अंगुल ऊपर, कंद के ऊपरी भाग में सोती हुई कुंडली योगियों के मोक्ष के लिए होती है किंतु मूढ़ लोगों के लिए वही बंधन का कारण बनती है | जो उस शक्ति को जानता है वही वास्तव में योग का जानकार है | कुंडली सर्प के समान टेढ़ी-मेढ़ी आकार वाली बताई गई है | उस कुंडली शक्ति को जिसने जागृत कर लिया वह मुक्त है |
इसमें संदेह नहीं गंगा और यमुना के बीच में स्थित तपस्विनी बालरण्डा को पुरुषार्थ से ग्रहण करना चाहिए, वही विष्णु का परम पद इड़ा भगवती गंगा है तथा पिड्गला यमुना नदी है और इड़ा, पिंगला के बीच में स्थित बालरण्डा कुंडली है | उस सोती हुई सर्पिणी को पूंछ पकड़ कर जगाना चाहिए | (आसन, मुद्रा, प्राणायाम के द्वारा) इससे वह शक्ति निद्रा छोड़कर एकाएक ऊपर की ओर उठती है |
हट प्रदीपिका के अनुसार कुंडलिनी जगाने के उपाय
हठ योग की महान ग्रंथ हठ प्रदीपिका में कुंडलिनी शक्ति जागरण की गहन चर्चा की गई है। यह ग्रंथ स्वात्माराम योगी द्वारा लिखा गया है और इसमें योग की गूढ़ विधियों का वर्णन है। हठ प्रदीपिका में कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए विभिन्न योगासनों, प्राणायाम, बंध, मुद्राओं और क्रियाओं का उल्लेख किया गया है। आइए विस्तार से समझते हैं:-
- प्राणायाम (Shvasa Pranayama)
हठ प्रदीपिका में प्राणायाम को कुंडलिनी शक्ति जागरण का मूल आधार बताया गया है।
- नाड़ी शोधन प्राणायाम:
यह प्राणायाम शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करता है, जिससे कुंडलिनी का प्रवाह आसान होता है।- विधि:
- सुखासन में बैठें।
- दाहिने नथुने को अंगूठे से बंद करें और बाएं नथुने से गहरी सांस लें।
- बाएं नथुने को बंद करें और दाहिने से सांस बाहर निकालें।
- इस प्रक्रिया को नियमित रूप से 10-15 मिनट तक करें।
- विधि:
- कपालभाति:
यह प्राणायाम ऊर्जा को ऊपर की ओर प्रवाहित करता है।- तीव्र श्वास और प्रश्वास की प्रक्रिया से कुंडलिनी जागृत होने में मदद मिलती है।
- बंध (Bandhas)
हठ प्रदीपिका में बंधों का उल्लेख कुंडलिनी जागरण के लिए किया गया है। ये शरीर में ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर ले जाते हैं।
- मूलबंध:
- यह मूलाधार चक्र को सक्रिय करता है।
- विधि: गुदा (Anal) को ऊपर की ओर खींचें और थोड़ी देर तक स्थिर रखें।
- उड्डीयान बंध:
- इससे नाभि क्षेत्र में ऊर्जा का संचार होता है।
- विधि: पेट को अंदर की ओर खींचें और कुछ देर तक सांस रोककर रखें।
- जालंधर बंध:
- गले को बंद करके ऊर्जा को सिर की ओर प्रवाहित किया जाता है।
इन तीनों बंधों को एक साथ लगाकर महा बंध का अभ्यास करें।
- मुद्राएं (Mudras)
मुद्राएं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- महामुद्रा:
- यह शरीर के तीन प्रमुख चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, और मणिपुर) को सक्रिय करती है।
- विधि: दाहिने पैर को बाईं जांघ पर रखें और बाएं पैर को सीधा रखें। श्वास लेते हुए अपने मस्तक को घुटने से लगाएं।
- शक्ति चालिनी मुद्रा:
- कुंडलिनी को मूलाधार से उठाने के लिए इस मुद्रा का अभ्यास किया जाता है।
- खेचरी मुद्रा:
- जीभ को तालु की ओर मोड़कर ऊपर की ओर रखें।
- आसन (Yoga Asanas)
हठ प्रदीपिका में कुंडलिनी शक्ति जागरण के लिए विशेष योगासनों का उल्लेख किया गया है।
- भुजंगासन (Cobra Pose):
यह कुंडलिनी जागरण के लिए सबसे प्रभावी आसन है।- विधि: पेट के बल लेटकर हाथों को जमीन पर रखें और शरीर के ऊपरी हिस्से को ऊपर उठाएं।
- पद्मासन (Lotus Pose):
- यह ध्यान और कुंडलिनी शक्ति के लिए आदर्श आसन है।
- सिद्धासन:
- इसे हठ प्रदीपिका में योगासनों का राजा कहा गया है। यह कुंडलिनी जागरण के लिए उत्तम है।
- षट्कर्म (Shatkarmas)
हठ प्रदीपिका में कुंडलिनी जागरण के लिए शरीर शुद्धि की छह क्रियाओं का उल्लेख किया गया है। इन्हें षट्कर्म कहते हैं।
- नेति: नासिका की शुद्धि।
- धौति: पेट और आंतों की शुद्धि।
- बस्ती: मलाशय की शुद्धि।
- नौली: पेट की मांसपेशियों का नियंत्रण।
- कपालभाति: मस्तिष्क की शुद्धि।
- त्राटक: आंखों और मानसिक ध्यान की शुद्धि।
षट्कर्म के माध्यम से शरीर को शुद्ध करके कुंडलिनी शक्ति जागरण के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाता है।
- ध्यान (Dhyana)
कुंडलिनी शक्ति जागरण के लिए ध्यान अत्यंत आवश्यक है।
- त्राटक ध्यान:
- एक स्थिर बिंदु या दीपक की लौ पर ध्यान केंद्रित करें।
- चक्र ध्यान:
- मूलाधार चक्र से शुरू करके सहस्रार चक्र तक ध्यान केंद्रित करें।
- बीज मंत्रों का उच्चारण:
प्रत्येक चक्र के लिए बीज मंत्रों का जाप करें, जैसे:- मूलाधार के लिए: “लं”
- स्वाधिष्ठान के लिए: “वं”
- मणिपुर के लिए: “रं”
- कुंभक (Breath Retention)
हठ प्रदीपिका में कुंभक प्राणायाम को कुंडलिनी जागरण का मुख्य साधन बताया गया है।
- सांस को रोकने और नियंत्रित करने से ऊर्जा का संचय होता है।
- विधि: गहरी सांस लें, उसे रोकें और बंधों का उपयोग करें।
- नादानुसंधान (Nada Yoga)
हठ प्रदीपिका में नाद योग का उल्लेख कुंडलिनी जागरण के लिए किया गया है।
- कानों में आने वाली आंतरिक ध्वनियों (नाद) पर ध्यान केंद्रित करें।
- यह प्रक्रिया मानसिक शांति प्रदान करती है और कुंडलिनी को जागृत करने में सहायक होती है।
सावधानियां
- कुंडलिनी जागरण के लिए एक योग्य गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है।
- बिना अभ्यास या तैयारी के कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रयास न करें।
- जल्दबाजी से बचें, क्योंकि कुंडलिनी जागरण मानसिक और शारीरिक रूप से गहन प्रक्रिया है।
कुंडलिनी जगाने के बारे में जाने
मूलाधार में स्थित उस कुंडलिनी को प्रातः सायं आधा प्रहर तक सूर्य नाड़ी से पूरक करके युक्ति पूर्वक पकड़कर प्रतिदिन चलाना चाहिए | मूल स्थान से एक बिता ऊंचाई पर तथा चार अंगुल विस्तार वाला कोमल सफेद तथा वस्त्र में लिपटे हुए के समान कंद का लक्षण कहां गया है | वज्रासन में बैठकर दोनों हाथों से दोनों पांव के टखनों को दृढ़ता से पकड़े और उससे कंद को जोर से दबाये साधक वज्रासन में बैठकर कुंडलिनी को चलाने की क्रिया करें अनंतर भस्त्रिका, कुंभक करें | इससे कुंडलिनी शीघ्र जगती है |
नाभि प्रदेश स्थित सूर्यनाड़ी का आकुंचन कर तब कुंडली को चलाएं इससे मृत्यु के मुख में गए हुए भी उस साधक को मृत्यु का भय कैसा अर्थात भय नहीं रहता है | उसे दो मुहूर्त तक निर्भर होकर चलाने से सुषुम्नायां मे कुछ प्रविष्ट वह शक्ति ऊपर की ओर खिंच जाती है | ऐसा करने से कुंडलिनी उस सुषुम्ना के मुख को निश्चित रूप से छोड़ देती है | जिससे वह प्राण अपने आप सुषुम्ना के अंदर चला जाता है |
इसलिए सुख पूर्वक सोते हुए अरुंधति को प्रतिदिन चलाना चाहिए | उसके संचालन मात्र से ही साधक रोगों से छुटकारा पा जाता है |जिस योगी ने कुंडली का चालन किया है वही योगी सिद्धि प्राप्त करता है, अनायास ही वह मृत्यु को जीत लेता है यदि आप अपने जीवन को अधिक सजगता और इरादे के साथ जीना चाहते हैं तो कुंडलिनी ध्यान की अवस्था में प्रवेश करने का एकमात्र तरीका ध्यान का अभ्यास करना है |
ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को समान रूप से मूल शक्ति दी है | इस शक्ति को विकसित करना हमारी जिम्मेदारी है | यह शक्ति का विकास एक साथ कर्म भक्ति और ज्ञान के माध्यम से तेजी से होता है | कुंडलिनी जिसकी भी जागृत हो जाती है, उसके संसार में रहना मुश्किल हो जाता क्योंकि वह सामान्य घटना नहीं है | कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीड की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ | जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवेंचक्र सहस्त्रार तक पहुंचना होता है |
मानव शरीर में कुंडलिनी महाशक्ति सभी रहस्य और शक्तियों को अपने में समाहित किए हुए सुप्त अवस्था में मूलाधार चक्र में स्थित रहती है | कुंडलिनीशक्ति के द्वारा जब सभी चक्रोऔर ग्रंथियों का भेदन होता है तो चक्र और ग्रंथियों में स्थित देवता अपना स्थान छोड़ देते हैं | कुंडलिनी योग के तहत कुंडलिनी शक्ति शरीर के 6 आध्यात्मिक ऊर्जा चक्र को सक्रिय करते हुए सिर के शीर्ष पर मौजूद सहस्त्रार चक्रको जगाती है जब यह जानती है तो इंसान की शारीरिक चेतना चली जाती है और जब यह सोती है तो इंसान फिर संसार के प्रति चेतन हो जाता है |
कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह 3:30 अनुपात में फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है परंतु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकारतरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है | लोग कहने लगे हैं | कुंडलिनी का नाम बहुत सुना है कि मेरी कुंडलिनी जाग्रत हो गई है |
लेकिन क्या यह सच है यह सवाल उन्हें खुद से करना चाहिए | संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए लगातार ध्यान करने से धीरे-धीरे कुंडलिनी जागृत होने लगती है और जब यह जागृत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता वाह दिव्य पुरुष बन जाता है हमारी निष्क्रिय शक्ति की तुलना बर्फ से की जा सकती है बर्फ को गर्म करके पानी को 100 डिग्री तक गर्मकरके वाष्पित हो जाता है |
उसी प्रकार चक्र विज्ञान का अभ्यास करने से हमारी सुप्त शक्ति मूलाधार चक्र सेसहस्त्रार चक्र तक पहुंचती है कुंडलिनी योग के माध्यम से तेजी से शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास एक साथ होता हैयह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है परंतु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकारतरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है कुंडलिनी का नाम बहुत सुना है और अब तो बहुत से लोग कहने लगे हैं कि मेरी कुंडलिनी जाग्रत है
लेकिन क्या यह सच है यह सवाल उन्हें खुद से करना चाहिए | संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए लगातार ध्यान करने से धीरे-धीरे कुंडलिनी जागृत होने लगती है और जब यह जागृत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता वह दिव्य पुरुष बन जाता है | हमारी निष्क्रिय शक्ति की तुलना बर्फ से की जा सकती है | बर्फ को गर्म करके पानी को 100 डिग्री तक गर्म करके वाष्पित हो जाता है |उसी प्रकार चक्र विज्ञान का अभ्यास करने से हमारी सुप्त शक्ति मूलाधार चक्र सेसहस्त्रार चक्र तक पहुंचती है | कुंडलिनी योग के माध्यम से तेजी से शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास एक साथ होता है |
निष्कर्ष
हठ प्रदीपिका में कुंडलिनी जागरण को आत्मज्ञान और आत्मसाक्षात्कार का माध्यम बताया गया है। इसमें बताए गए आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्राएं और ध्यान विधियां व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से जागरूक करती हैं। कुंडलिनी शक्ति को सही तरीके से और अनुशासन के साथ जागृत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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